अथ समासप्रकारणम् (भाग प्रथम) संस्कृत और हिंदी दोनों में व्याख्या

 

समास एक संज्ञा है।

समास का शाब्दिक अर्थ है एक साथ रहना । जैसे राम का नाम =रामनाम, गंगा का जल= गंगाजल, देश का भक्त =देशभक्त, मत का अधिकार =मताधिकार आदि ।


अनेकपदानामेकपदीभवनं समासः अनेक पद मिलकर एक पद होना समाज है। समास का विग्रह है-समसनं समासः अर्थात् संक्षिप्त होने को समाज कहते हैं। दो या दो से अधिक शब्द जहां एक जगह ,एकपद, एक अर्थ वाले बन जाते हैं उसे समाज कहते हैं । जैसे गङ्गायाः जलम् में गङ्गाया यह षष्ठ्यन्त अलग पद है और जलम् प्रथमान्त पद है गङ्गाया का अर्थ है गंगा का और जलम् का अर्थ है पानी ।


ये पद भी अलग है और अर्थ भी अलग है समास करके एक पद हो जाएगा गंगा जन्म और अर्थ भी एक ही हो जायेगा गङ्गाजलम् और अर्थ भी एक ही होगा गङ्गाजल इसलिए कहा जाता है कि समास में एकार्थीभाव-रूप सामर्थ्य रहता है ।जहां पदार्थों की एक साथ उपस्थिति होती है पृथक पृथक नहीं वहां एकार्थीभाव-रूप सामर्थ्य होता हैं।


अतः समास का लक्षण बताया गया है-


"एकार्थीभावापन्नपदसमुदायविशेषत्वं समासत्वम्।"

समाज दो या दो से अधिक पदों के साथ होता है परस्पर संबंध अर्थ वाले पद ही एक साथ रह सकते हैं अतः वही समाज के योग्य होते हैं परस्पर संबद्ध अर्थ वाले पद ही एक साथ रह सकते हैं। अतः वे ही समाज के योग्य होते हैं पर असम्बध्दार्थ पद समाज के योग्य नहीं होते। यद्यपि पद में दोनों प्रकार की विभक्तियां (सुप् और तिङ) होती हैकिंतु समास आधिक्येन सुबन्त शब्दों के साथ ही होते है तिङन्त में नहीं होता ।कुछ विशेष स्थलों पर तिङन्त के साथ भी इस समास से बताया गया है , वह आगे स्पष्ट होगा यह अपवाद वेद के लिये ही है समास में दो या दो से अधिक पदों के साथ लगी हुयी विभक्तियों का एक बार तो लोप ही हो जाता है और समस्त पदों को जाने पर अंत में पुनः समुदाय से पृथक विभक्ति आती है समास में प्रयुक्त सभी पद मिल कर एक शब्द(पद) के रूप में परिणित हो जाते हैं तदनन्तर समस्त पद के अंत में पुनः विभक्त किया लगायी जाती है। इस तरह वह पद परिनिष्ठित हो जाता है।


 समास में होने वाली विशेषताओं के आधार पर समासलक्षणाबोधक पद्य हैं -

"विभक्तिर्लुप्यते यत्र तदर्थस्तु प्रतीयते।

पदानां चैकपद्यं च समासः सोऽभिधीयते।।"


अर्थात् समाससंज्ञा होने पर प्रातिपदिकसंज्ञा होकर दोनों पदों की विभक्तियों का लोप हो जाता है। समास के विग्रहवाक्य में विद्यमान अर्थ की समास के बाद भी प्रतीति होती है और समाज में अनेक पद मिल कर एक पद हो जाता है।


 मुख्यतया समास के चार भेद होते हैं- अव्ययीभावसमास, तत्पुरुषसमास, बहुव्रीहिसमास और द्वंदसमास


केवल समास भी एक माना जाता है किंतु इस समास में समास तो होता है किंतु समासविशेष की संज्ञा नहीं होती है इसलिए इसे केवल-समास कहा जाता है। इसका उदाहरण है- भूतपूर्वः

समास के कुछ उदहारण:-

उपकृष्णम् (अव्ययीभावसमास)

हरौ इति – अधिहरि(अव्ययीभावसमास)

कृष्णं श्रितः – कृष्णश्रितः (द्वितीयातत्पुरुषः)

नीलम् कमलम् = नीलकमलम्।। (कर्मधारय समास)

सप्तानां दिनानां समाहारः इति = सप्तदिनम्

(द्विगुसमास)

भूतपूवः (केवल समास)

पीतानि अम्बबराणि यस्य सः पीताम्बबरः(बहुव्रीहिसमास)

रामश्च कृष्णश्च =रामकृष्णौ(द्वंदसमास)

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